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Friday, September 24, 2010

कुपंथ से सुपंथ पर ले जाने वाला ही मित्र है-पं पुरोहित

सीहोर जो व्यक्ति हमें कुमार्ग से सुमार्ग की ओर ले कर जाता है, जो संसार में मित्र के अवगुण छुपाकर गुणों को जन साधारण में प्रगट करता है यथार्थ मे वो ही हमारा सच्चा मित्र होता है। श्री मद भागवत में भक्ति की नौ धाराएँ श्रवण, स्मरण, कीर्तन, चरण सेवा, अर्चना, वंदना, दासता, मित्रता एवं आत्म निवेदन है। भगवान कृष्ण और सुदामा की करुण कथा यथार्थ में मित्र भक्ति का अनूठा उदाहरण है। परमात्मा अपने द्वार पर खड़े अपने मित्र सुदामा को आलिंगन में बाँध लेते है  तथा फिर उसे अपने सिंहासन पर बिठा देता है। उक्त उद्गार निकटस्थ ग्राम छतरपुरा में चल रही श्रीमद भागवत कथा में प्रसिद्ध कथा वाचक महामंडलेश्वर पं अजय पुरोहित ने व्यक्त किये। पं पुरोहित ने आगे बताया कि जो श्री भक्त अपने हदय सिंहासन पर परमात्मा को विराजमान करता है तो बदले में भगवान उस भक्त को अपने सिंहासन पर विराजित कर देते है और उसे तीन लोक की संपत्ति दे देते हंै। पं पुरोहित ने बताया कि सुदामा के घर मे एक बर्तन भी साबुत नहीं है,सुदामा के तन पर पहने हुए कपड़े फटे हैं, जब वर्षा आती है तो वर्षा का पानी झोंपड़ी में भर जाता है, सुदामा को एक वक्त का भोजन भी बड़ी मुश्किल से प्राप्त होता है किन्तु इस पर भी भगवान का सखा सुदामा दरिद्र नहीं है। दरिद्र शब्द की व्याख्या करते पं पुरोहित ने बताया दरिद्र वो होता है जिसके पास संपत्ति होते हुए भी संतुष्टि नहीं है। संसार का सबसे बड़ा दरिद्र लंका का राजा रावण था। जिसके रनिवास में स्वर्ग की अप्सराऐं होने पर भी उसने माता सीता का हरण किया। संसार में महानतम मिलनी केवल दो बार हुई है एक राम में अवतार राम जी और भरत की मिलनी और दूसरी कृष्ण अवतार में कृष्णजी और सुदामा जी की मिलनी। सुदामा शब्द और भरत शब्द की वयाख्या करते हुए बताया कि जो प्रेम रूपी रस्सी से बंधा है उसी का नाम सुदामा है और ज्ञान रूपी रस्सी से बंधा है वो ही भरत है। और ऐसे ही व्यक्तियों से भगवान की मिलनी संभव है। कथा के अंतिम दिन ग्राम के भक्त गणों ने पं पुरोहित को भावपूर्ण बिदाई दी। अंतिम दिन भक्तों का जन सैलाब उमड़ पड़ा ट्रेक्टर ट्राली खड़ी करने की जगह कम पड़ गई। ग्राम के जागीरदार परिवार, जिला पंचायत उपाध्यक्ष माया राम गौर ने सभी भक्त जनों का आभार व्यक्त किया है।

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