कथा के अंतिम दिन उमड़ा जन सैलाब
सीहोर ज्ञान का फल धन या प्रतिष्ठा नहीं परमात्मा से मिलन है । विद्या का उपयोग केवल धनोपार्जन के लिये ठीक नहीं है । भक्त अपनी विद्या का उपयोग भगवत प्राप्ति के लिये करते हैं । राजा परीक्षित शुकदेव जी से कहते हैं कि गुरूदेव कृष्ण कथा को सुनकर तृप्ति नहीं हो पा रही है । वह वाणी धन्य है जो भगवान का गुणगान करती है । वही हाथ सगाा हाथ है जो भगवान की सेवा करता है । वही मन सगाा मन है जो स्थावर जंगम सभी में व्याप्त प्रभु का स्मरण कराता है । वही कान सगो कान हैं जो भगवान की पवित्र कथा का श्रवण करते हैं । निकटस्थ ग्राम छतरपुरा में जागीरदार परिवार द्वारा स्व. मदनलाल जी जागीरदार की स्मृति में करवाई जा रही भागवत कथा में अंतिम दिन की कथा सुनाते हुए महामंडलेश्वर पंडित अजय पुरोहित ने कहा कि सम्पत्ति और शक्ति का सदुपयोग करने वाला देव है तथा इनका दुरुपयोग करने वाला दैत्य है । भागवत कथा मानव को देव बनाने के लिये है । समय शक्ति और सम्पत्ति का सदुपयोग करना चाहिये । मनुष्य अपना बहुत सा समय व्यसन में नष्ट कर देता है । यदि परमात्मा ने तुम्हें अधिकार दिया है तो सदुपयोग करने का दायित्व भी तुम्हारे ही ऊपर है । पंडित पुरोहित ने सुदामा की कथा सुनाते हुए कहा कि आत्म संपत्ति, शक्ति तथा विद्या का सदुपयोग सुदामा जी ने किया परिणाम स्वरूप उन्हें भगवान ने ऐश्वर्यशाली बनाया । अंतिम दिन की कथा में पंडित अजय पुरोहित ने कहा कि यह शरीर तो मलिन है इस शरीर से ब्रह्म संबंध हो नहीं सकता । शरीर तो दुर्गन्ध युक्त है अत: देव तो इससे दूर भागते हैं । मन को ईश्वर से जोडऩा पड़ेगा । काल सभी के सिर पर मंडराता है यदि इससे बचना है तो ईश्वर की शरण में जाना पड़ेगा । सभी में प्रभु का अंश है ऐसा मान कर व्यवहार करने से मन भक्तिमय बन जायेगा । जड़ चेतन एक हैं सभी जड़ चेतन ईश्वर मय हैं ऐसा मानने से पापों से बचा जा सकता है । और मन को शान्ति मिलना संभव है । कथा के अंतिम दिन आस पास के हजारों श्रद्धालुगण उमड़ पड़े ।
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