साधना के द्वारा ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है-साध्वी सरिता बहन
सीहोर। भगवान कैसे? आप जैसा चाहते हो वैसे। भगवान की अपनी कोई जाति नही। भगवान का अपना कोई रूप रंग नही। जिस रूप-रंग से आप चाहते हो, उसी रूप रंग से वे समर्थ प्रकट हो जाते है। ईश्वर को पाने के लिए साधना जरूरी है। साधना के द्वारा ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। उक्त उद्गार स्थानीय सिंधी कालोनी मैदान पर श्री योग वेदान्त सेवा समिति के तत्वाधान में जारी दिव्य सत्संग के दौरान भक्ति, योग और वेदांत के अनुभव निष्ठ सत्पुरुष संत श्री आसाराम जी बापू की कृपा पात्र शिष्या साध्वी सरिता बहन ने सत्संग रूपी द्वितीय दिवस में पधारे सभी साधकों और भक्तों को प्रणाम करते हुए कहे।
उन्होंने आगे कहा कि एक आदमी किसी संत के पास पहुंचा। उसने देखा संत नर्सरी से पौधे निकालकर क्यारी में पौधे लगा रहे है। उसने संत की क्रियाओं को देखा। उससे रहा नही गया तो उसने पूर्ण जिज्ञासा में डूबकर संत से कहा कि आप यह क्या कर रहे है? आप तो इतने बड़ संत है। फिर इधर-उधर क्यों पौधारोपण करते है। संत ने कुछ नही कहा अपने कार्य में विलीन हो गए। कुछ देर बाद सभी पौधे लगाने के बाद उन्होंने कहा कि तुम ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते होते हो तो सबसे पहले अपने इधर-उधर के ख्याल को सीमित करो तभी तुम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।
साध्वी बहन ने आगे कहा कि साधक आत्मा में विश्रांति पाता है तो गुरु की प्रेमपूर्ण कृपा उस पर बरसती है। जो मैं देहरूप होकर दिख रहा हूँ, वह मैं नहीं हूँ। यह एक देह, नात-जात या मत-पंथ मेरा नहीं है। जो दिख रहा हूँ, वैसा मैं नहीं हूँ। किसी देश में या प्रांत में अथवा किसी काल में या किसी रूप में जैसा दिखता हूँ, वैसा मैं नहीं हूँ।
बहन ने आगे कहा कि ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ से तू मुझसे बाहर निकल सके। ऐसा कोई समय नहीं जब मैं नहीं हूँ। ऐसा कोई कर्म नहीं जो तू मुझसे छिपा सके। तत्व से तू मेरा अनुभव करे तो तू मुझमें ही रहता है, मुझमें ही बोलता है। मैं तुझे यह गोपनीय बात बता रहा हूँ। देह की आकृति से मैं लेता देता, कहता सुनता दिखता हूँ, इतना मैं नहीं हूँ। तू देह में बँधा है, इसलिए देह में रहकर तुझे जगाना होता है। साधना और भक्ति से ईश्वर मिलता है। जब तक हम हमारे अंदर का विवेक नही जाग्रत करेंगे। तब तक हम ईश्वर से दूर है। ईश्वर के लिए घर, दुकान और नौकरी नहीं छोडऩा है। हमें ध्यान से कार्य करना है। तभी ईश्वर की प्राप्ति होगी।
मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम
रविवार को प्रवचन के उपरांत मातृ-पित का पूजन का सिलसिला शुरू हुआ। इस अवसर पर साध्वी सरिता बहन ने यहां पर आए साधकों और भक्तों को माता-पिता की प्रदक्षिणा व उन्हें प्रणाम करके असीम प्राप्त करने की कुंजी के बारे में ज्ञान दिया। उन्होंने बताया कि अपने बच्चों को स्वस्थ, प्रसन्नचित्त, उत्साही, एकाग्र, लक्ष्यभेदी एवं कार्यकुशल बनाने हेतु क्या किया जाना चाहिए। मैदान में संगीतमय सत्संग के दौरान हरि ओम-हरि ओम, जय-जय श्री आसाराम के भंजनों से वातावरण गूंजा।
सीहोर। भगवान कैसे? आप जैसा चाहते हो वैसे। भगवान की अपनी कोई जाति नही। भगवान का अपना कोई रूप रंग नही। जिस रूप-रंग से आप चाहते हो, उसी रूप रंग से वे समर्थ प्रकट हो जाते है। ईश्वर को पाने के लिए साधना जरूरी है। साधना के द्वारा ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। उक्त उद्गार स्थानीय सिंधी कालोनी मैदान पर श्री योग वेदान्त सेवा समिति के तत्वाधान में जारी दिव्य सत्संग के दौरान भक्ति, योग और वेदांत के अनुभव निष्ठ सत्पुरुष संत श्री आसाराम जी बापू की कृपा पात्र शिष्या साध्वी सरिता बहन ने सत्संग रूपी द्वितीय दिवस में पधारे सभी साधकों और भक्तों को प्रणाम करते हुए कहे।
उन्होंने आगे कहा कि एक आदमी किसी संत के पास पहुंचा। उसने देखा संत नर्सरी से पौधे निकालकर क्यारी में पौधे लगा रहे है। उसने संत की क्रियाओं को देखा। उससे रहा नही गया तो उसने पूर्ण जिज्ञासा में डूबकर संत से कहा कि आप यह क्या कर रहे है? आप तो इतने बड़ संत है। फिर इधर-उधर क्यों पौधारोपण करते है। संत ने कुछ नही कहा अपने कार्य में विलीन हो गए। कुछ देर बाद सभी पौधे लगाने के बाद उन्होंने कहा कि तुम ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते होते हो तो सबसे पहले अपने इधर-उधर के ख्याल को सीमित करो तभी तुम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।
साध्वी बहन ने आगे कहा कि साधक आत्मा में विश्रांति पाता है तो गुरु की प्रेमपूर्ण कृपा उस पर बरसती है। जो मैं देहरूप होकर दिख रहा हूँ, वह मैं नहीं हूँ। यह एक देह, नात-जात या मत-पंथ मेरा नहीं है। जो दिख रहा हूँ, वैसा मैं नहीं हूँ। किसी देश में या प्रांत में अथवा किसी काल में या किसी रूप में जैसा दिखता हूँ, वैसा मैं नहीं हूँ।
बहन ने आगे कहा कि ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ से तू मुझसे बाहर निकल सके। ऐसा कोई समय नहीं जब मैं नहीं हूँ। ऐसा कोई कर्म नहीं जो तू मुझसे छिपा सके। तत्व से तू मेरा अनुभव करे तो तू मुझमें ही रहता है, मुझमें ही बोलता है। मैं तुझे यह गोपनीय बात बता रहा हूँ। देह की आकृति से मैं लेता देता, कहता सुनता दिखता हूँ, इतना मैं नहीं हूँ। तू देह में बँधा है, इसलिए देह में रहकर तुझे जगाना होता है। साधना और भक्ति से ईश्वर मिलता है। जब तक हम हमारे अंदर का विवेक नही जाग्रत करेंगे। तब तक हम ईश्वर से दूर है। ईश्वर के लिए घर, दुकान और नौकरी नहीं छोडऩा है। हमें ध्यान से कार्य करना है। तभी ईश्वर की प्राप्ति होगी।
मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम
रविवार को प्रवचन के उपरांत मातृ-पित का पूजन का सिलसिला शुरू हुआ। इस अवसर पर साध्वी सरिता बहन ने यहां पर आए साधकों और भक्तों को माता-पिता की प्रदक्षिणा व उन्हें प्रणाम करके असीम प्राप्त करने की कुंजी के बारे में ज्ञान दिया। उन्होंने बताया कि अपने बच्चों को स्वस्थ, प्रसन्नचित्त, उत्साही, एकाग्र, लक्ष्यभेदी एवं कार्यकुशल बनाने हेतु क्या किया जाना चाहिए। मैदान में संगीतमय सत्संग के दौरान हरि ओम-हरि ओम, जय-जय श्री आसाराम के भंजनों से वातावरण गूंजा।
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