धूमधाम से मनाया भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मणी का विवाह
सीहोर। कभी अहंकार को अपने ऊपर हावी नही होने देना चाहिए। अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। सहजता और सौम्यता बड़प्पन के गुण हैं । शिशु से बालक, तरुण एवं युवा होते कृष्ण ने अपनी बाल लीला करते हुये तृणावर्ण, अघासुर, अरिष्टासुर, केशी, व्योमासुर, चाणूर, मुष्टिक तथा कंस जैसे दुष्ट दैत्यों और राक्षसों का वध कर डाला। राधा तथा गोपियों के साथ रासलीला की। यमुना के भीतर घुसकर विषधर कालिया नाग को नाथा। गोवर्धन पर्वत को उठा कर इन्द्र के अभिमान को चूर-चूर किया। अपने बड़े भाई बलराम के द्वारा धेनुकासुर तथा प्रलंबसुर का वध करवा दिया। विश्वकर्मा के द्वारा द्वारिका नगरी का निर्माण करवाया। कालयवन को भस्म कर दिया। जरासंघ को सत्रह बार युद्ध में हराया। कस्बा स्थित पुरानी निजामत क्षेत्र में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के छठे दिवस श्रीमद्भागवत कथा अमृत वृष्टि के दौरान यह उद्गार पंडित चेतन उपाध्याय ने व्यक्त किए। संगीतमय श्रीमद्भागवत में बुधवार कथा के दौरान भगवान कृष्ण और रुक्मणी का विवाह धूमधाम से मनाया गया। पंडित श्री उपाध्याय ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जरासंघ के पाप का घड़ा अभी भरा नहीं था और उसे अभी जीवित रहना था, इसलिये अठारहवीं बार उससे युद्ध करते हुये रण को छोड़ कर द्वारिका चले गये। इसीलिये कृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ा। इस प्रकार कृष्ण युवा हो गये। उन्होंने कहा कि कृष्ण के शील व पराक्रम का वृत्तान्त सुनकदर विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी उन पर आसक्त हो गई। विदर्भराज के रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक पाँच पुत्र और एक पुत्री रुक्मणी थी। रुक्मणी सर्वगुण सम्पन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके माता-पिता उसका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे किन्तु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। अत: उसने रुक्मणी का टीका शिशुपाल के यहाँ भिजवा दिया। रुक्मणी कृष्ण पर आसक्त थी इसलिये उसने कृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। कृष्ण ने संदेश लाने वाले ब्राह्मïण से कहा, हे ब्राह्मïण देवता! जैसा रुक्मणी मुझसे प्रेम करती हैं वैसे ही मैं भी उन्हीं से प्रेम करता हूँ। मैं जानता हूँ कि रुक्मणी के माता-पिता रुक्मणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं परन्तु उनका बड़ा भाई रुक्म मुझ से शत्रुता रखने के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है। तुम जाकर राजकुमारी रुक्मणी से कह दो कि मैं अवश्य ही उनको ब्याह कर लौटूंगा। पंडित जी ने कहा कि अनेक विपत्तियों के उपरांत भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी को लेकर द्वारिकापुरी आये जहाँ पर वसुदेव तथा उग्रसेन ने कुल पुरोहित बुला कर बड़ी धूमधाम के साथ पूर्ण विधि से दोनों का पाणिग्रहण संस्कार करवाया। मंगलवार को श्रीमद् भागवत कथा के दौरान अंतिम क्षणों में महिलाओं ने भगवान के साथ पुष्प वर्षा कर होली खेली। यहां पर बड़ी संख्या में आई महिलाएं संगीतमय भजनों की धुन पर आनंद से नृत्य करने लगी।
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