यदि आपके पास कोई समाचार या फोटो है तथा आप भी किसी समस्या को शासन स्तर पर पंहुचाना चाहते हैं और किसी विषय पर लिखने के इच्छुक है,तो आपका स्वागत है ईमेल करे- writing.daswani@gmail.com, Mob No.-+919425070052

Monday, April 18, 2011

श्रीराम कथा गृहस्थियों का धर्म है-कोकिल जी महाराज

सीहोर। भागवत योगियों का ग्रंथ है और श्रीराम कथा गृहस्थियों का ग्रंथ है। भागवत कथा से योगी जागता है और राम कथा से गृहस्थ का जीवन सुखमय हो जाता है। अहंकार का रुप और व्यावहारिक जीवन में कैसे अहंकार जीवन में प्रवेश कर जाता है। जिसे जानकर आप अपने जीवन में अनचाहे दुखों से बच सकते हैं। सरल शब्दों में जब भी व्यक्ति के मन में स्वयं का महत्व सबसे ऊपर हो जाता है और अपनी बात, विचार और कामों के साथ ही वह स्वयं को ही बड़ा मानने लगता है। तब यह स्थिति ही अहंकार की होती है। श्रीराम कथा मनुष्य के अहंकार को दूर करती है। उक्त उद्गार कथा के तीसरे दिन राष्ट्रीय संत कोकिल जी महाराज ने शुगर फैक्ट्री चौराहा स्थित बीएसआई मैदान पर जारी संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं से कही।
संत श्री ने कहा कि मन ही व्यक्ति को बड़ा बनाता है। मन ही छोटा। शनिवार की रात बड़ी संख्या में आई महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे हो वैसे ही रहो। संत श्री ने सती और सूपनखा का उदाहरण देते हुए कहा कि सती भगवान श्रीराम जी के सामने रूप बनाकर गई। सीता का रूप। रामायण में दो देवियों ने श्रंृगार (ब्यूटी-पार्लर) किया है। एक सती और एक सूपनखा दोनों ने अति सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग किया है। लेकिन एक तो जलकर मर गई दूसरी की नाक कट गई। संत श्री ने कहा कि अनेक बार एक व्यक्ति को दूसरे का अहंकार दिखाई देता है पर स्वयं का नहीं। जबकि सच यह है कि अहंकार कभी न कभी किसी में आता है या यूं कहें कि यह सभी में रहता है। सभी जानते हैं कि अहंकार करना एक बुराई है पर इसे पहचानना भी कठिन है। किंतु इसकी पहचान स्वभाव और व्यवहार से संभव है। जब मन में यह विचार आये कि मैंने यह किया या वह किया तब समझ लीजिये कि वह हमारे अंदर बैठा अहंकार बोल रहा है।

0 comments: