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Wednesday, April 20, 2011

कलियुग में भगवान श्रीराम के नाम का सहारा-संत श्री कोकिल जी महाराज

संगीतमयी श्रीराम कथा में झूमे श्रद्धालु
सीहोर। मनुष्य को दिनचर्या में से कुछ समय अवश्य ही प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए। कलियुग में भगवान के नाम का स्मरण ही भवसागर को पार करने में सहायक है। कलियुग में भगवान श्रीराम के नाम का सहारा, स्त्रियों के पतिव्रत धर्म की व्याख्या की। उक्त उद्गार शुगर फैकट्री चौराहा स्थित श्री मारुति नन्द नव युवक संगठन के तत्वाधान में जारी संगीतमय श्रीराम कथा के छठवे दिन यहां पर उपस्थित विशाल जन समुदाय को श्रीराम कथा सुनाते हुए राष्ट्रीय संत श्री कोकिल महाराज ने कहे।
संत श्री ने कहा कि स्त्रियों के लिए पति की सेवा ही सबकुछ है। इसी प्रकार भक्त के लिए भगवान की सेवा ही सब कुछ है। मनुष्य को मोह माया में फंसकर ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए। संत श्री ने सेवा के महत्व को समझाते हुए कहा कि माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। अपने पिता एवं माता की सेवा कर श्रवण कुमार ने दुनिया के समक्ष एक आदर्श स्थापित किया है। संसार के प्रत्येक बेटे को श्रवण कुमार जैसा बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि छोटे को प्यार व बड़े को सम्मान देना रामराज की स्वस्थ परंपरा है। यह शरीर साधन का धाम है तथा मोक्ष का द्वार है। इस शरीर को विषय योग से हटाकर ईश्वर के संकीर्तन में लगाना चाहिए।  राम नाम संकीर्तन से जीवन में सुधार होता है। परमात्मा ने इस जगत में मानव को आकर्षक काया दी है। इस काया को आध्यात्मिक कर्मो में लगाना चाहिए। परमात्मा माया के बंधन से परे होता है।  इस घोर कलियुग में राम नाम रूपी संजीवनी ही व्यक्ति को दुखों के भवसागर से निकाल सकती है। उन्होंने कहा कि भगवान सदैव अपने भक्तों के साथ होते हैं। इसलिए कठिन परिस्थितियों में भी मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए तथा परमात्मा को हमेशा याद रखना चाहिए। साथ ही कहा कि इतिहास साक्षी है कि ईश्वर ने कभी भी अपने भक्तों का अहित नहीं होने दिया। परिवार की मर्यादा टूट जाती है तब घर में दुखों का पहाड़ टूट जाता है घर में सभी लोगों में समन्वय बना रहे तो परिवार में सबको शांति मिलती है। अपने बच्चे को भगवान श्रीराम बनाना चाहते हो तो खुद दशरथ बनो।
भगवान श्री राम का वनवास
संगीतमय श्रीराम कथा के छठवे दिन भगवान श्रीराम के वनवास के बारे में यहां पर उपस्थित भक्तों और श्रद्धालुओं से कहा कि राम को चौदह वर्ष का वनवास माता कैकई के आदेश से राजा दशरथ ने दिया। कोई भी ऐसा आदेश प्रथम दृष्टि में दंड माना जाता है। राम, राजा दशरथ के सबसे बड़े बेटे थे। परम्परा के अनुसार उनका राजतिलक होना चाहिए था। राजतिलक की तैयारी भी थी, किन्तु इसी बीच दासी मन्थरा के षडयंत्र पूर्ण मंतव्य को सुन माता कैकई अपने पुराने वर के रूप में राम का वनवास मांग लेती हैं। और राजा दशरथ को न चाहते हुए भी विवश भाव से उसे स्वीकार करना होता है। राम राजा बनते-बनते वनवास के लिए सहर्ष प्रस्थान कर जाते हैं। इसे हम कया कहेंगे? यदि हमारे साथ ऐसा कुछ घटित हो तो हम उसे आज किस रूप में ग्रहण करेंगे? कया वनवास चले जाएंगे?कया दुनिया उसे दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कहेगी? यह प्रश्न है। राम का वनवास सम्पूर्ण रामायण की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। विचार कीजिए कि यदि राम चन्द्र को वनवास नहीं मिलता तो रामायण की कथा कया होती? कया यह कथा अपना दम नहीं तोड़ देती? राम के राज्याभिषेक के बाद तो जो भी कथा बनाई जाती, वह सिर्फ राजा राम की ही होती। कथा के छठवे दिन खनिज विकास निगम अध्यक्ष गुरु प्रसाद, भाजपा अध्यक्ष रघुनाथ भाटी, कांग्रेस के युवा नेतजा अखिलेश राठौर, आदि शामिल थे।

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