सीहोर। रावण के अवगुणों को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो उसके बराबर ज्ञानी धरती पर कोई दूसरा नहीं था,इसी बात को स्वीकार करते हुए जिला मुख्यालय पर एक परिवार ने रावण की पूजा अर्चना को इस बार भी बरकरार रखा। जिला मुख्यालय पर रविवार को लगभग हर गली मोहल्लें में बुराई के प्रतीक रावण के पुतलों का दहन किया गया। मुख्य समारोह के अलावा भी बच्चों ने अपने-अपने घरों के सामने रावण के पुतले बनाकर उनका शाम को दहन किया। शाम को बिजली आ जाने के बाद लगभग हर मोहल्ले में यह क्रम देखा गया पर इन पुतलों के दहन के बीच एक परिवार ऐसा भी जिन्होंने पूर्ण विधि विधान के साथ लंका के राजा रावण की पूजा की। इस परिवार द्वारा इस परम्परा का निर्वहन कई सालों से किया जा रहा है। आम तौर पर दशहरा पर्व पर रावण के दहन कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे है इस परम्परा का निर्वहन रविवार को सीहोर जिले में भी किया गया। इन परम्पराओं के बीच स्थानीय इंदौर नाका पर राठौर परिवार ने रावण की पूजा की परम्परा को भी बरकरार रखा। इंदौर नाका पर किराने की दुकान और आटा चक्की संचालित करने वाले राधेश्याम राठौर परिवार ने रविवार की दोपहर को रावण की पूजा की। जिसमें उनके परिवार का हर छोटा और बड़ा सदस्य शामिल हुआ। राधेश्याम राठौर परिवार द्वारा सबसे पहले गोबर से रावण के पुतले बनाए गए रावण के साथ-साथ मेधनाथ और कुंभकर्ण के भी गोबर से प्रतीक स्वरूप पुतले बनाए गए। गोबर से पुतले बनाने का कार्य घर की देहली पर महिलाओं द्वारा किया गया। सुबह से प्रारंभ किया गया यह कार्य दोपहर बाद तक चला। यहां पर पुतलों के अलावा व्यवसाय संचालन में काम आने वाले सभी उपकरण जिसमें तराजू, बाट और अन्य वस्तुएं भी शामिल को भी पूजा में शामिल किया गया। सभी पुतलों और उपकरणों पर गेंदें की माला अर्पित करने के अलावा रोली, चंदन से तिलक कर पूजा अर्चना की गई। पूजा अर्चना के समय आरती भी की गई। पूजा अर्चना के दौरान राधेश्याम राठौर के परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे, उनके पोते-पोती भी पूजा में शामिल हुए। राधेश्याम राठौर ने बताया कि यह परम्परा बरसों से चली आ रही है रावण की पूजा से उनके परिवार में सुख,शांति और आर्थिक सुद्वढ़ता मिलती रही है। पहले हमारे पूर्वज और अब हम और आगे मेरे पोते इस परम्परा को बरकरार रखेंगे यही कारण है कि सभी लोग पूजा में शामिल होते है।
0 comments:
Post a Comment