वांशिगटन में रहकर भारतीय साहित्य की सेवा कर रहे राकेश खंडेलवाल के सीहोर आगमन पर की गई बातचीत
सीहोर. अपनी मिट्टी से हटने की लालसा कभी महसूस नहीं हुई है,जहां पर भी जाते है अपने वतन की मिट्टी की खुशबू सदा याद रहती है। यहीं खुशबू मेरी कविता में नजर आती वांशिगटन से सीहोर आए साहित्यकार राकेश खंडेलवाल ने यह बात चर्चा करते हुए कही।राजस्थान के भरतपुर में जन्में राकेश खंडेलवाल इन दिनों अमेरिका के वांशिगटन मे वांशिगटन हास्पिटल सेन्टर में सीनियर समन्यवक के रुप में अपनी सेवाएं प्रदान करते हुए भारतीय साहित्य की भी सेवा कर रहे है।शिवना के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शनिवार की शाम को सीहोर पधारे श्री खंडेलवाल ने इस संवाददाता से चर्चा करते हुए कहा कि भारत की गंध अमेरिका में भी महसूस करते हुए हिन्दी साहित्य की सेवा कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे है।
उन्होंने कहा कि वांशिगटन में उत्तरी भारत के रहने वाले करीब चार सौ लोग हर दो माह में काव्य गोष्ठी में एकत्रित होकर अपनी रचनाएं सुनाते है। जिसमें चालीस प्रतिशत युवा भी शामिल हो रहे है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा है कि मैं शुरू से ही पांरपिक कविता का पक्षधर रहा हूं। आधे पद्य और आधे गद्य के रुप में की जाने वाली कविताओं को वास्तव में कविता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। श्री खंडेलवाल ने कहा कि कविता में भावना ही सर्वोपरि रहा करती है जो किसी भी एक शैली में ही शामिल हो पाती है। पर दुर्भाग्य का विषय यह है कि लेखक इसकी गंभीरता को समझ नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में कभी भी सोचकर नहीं लिखा मन में आने वाले विचारों को ही लिखने का प्रयास किया। कविता जगत में प्रवेश का संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भरतपुर के पुस्तकालय में हर माह कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता था जिसमें अगले माह का विषय दिया जाता था जिस पर चार लाइन लिखकर आनी होती थी एक बार मैं ग्याहर वर्ष की उम्र में लिखकर गया जिसे सराहना मिली तो आज तक क्रम जारी है। उन्होंने कहा कि जब से इंटरनेट पर यूनिक कोड का इस्तेमाल होने लगा तब से विदेश में रहने वाले भारतीयों के लिए काफी आसानी हो गई है। विदेशों में हिन्दी को लेकर काफी सम्मान है तथा सभी उसे सम्मान देने के लिए लालायित भी नजर आते है। तथाकथित साहित्यकारराकेश खंडेलवाल ने कहा कि वांशिगटन में उत्तर भारत के लोग आज भी कविता को लेकर धीर गंभीर है। उनकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि व्यंगकार के रुप में तेजी के साथ साहित्यजगत में शामिल हो रहे फूहड़ रचनाकारों को कार्यक्रम के बीच में ही यह कहकर मंच से उतार दिया जाता है कि कुछ अच्छी रचना हो तो सुनाए अन्यथा रहने दीजिए।
उन्होंने कहा कि वांशिगटन में उत्तरी भारत के रहने वाले करीब चार सौ लोग हर दो माह में काव्य गोष्ठी में एकत्रित होकर अपनी रचनाएं सुनाते है। जिसमें चालीस प्रतिशत युवा भी शामिल हो रहे है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा है कि मैं शुरू से ही पांरपिक कविता का पक्षधर रहा हूं। आधे पद्य और आधे गद्य के रुप में की जाने वाली कविताओं को वास्तव में कविता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। श्री खंडेलवाल ने कहा कि कविता में भावना ही सर्वोपरि रहा करती है जो किसी भी एक शैली में ही शामिल हो पाती है। पर दुर्भाग्य का विषय यह है कि लेखक इसकी गंभीरता को समझ नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में कभी भी सोचकर नहीं लिखा मन में आने वाले विचारों को ही लिखने का प्रयास किया। कविता जगत में प्रवेश का संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भरतपुर के पुस्तकालय में हर माह कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता था जिसमें अगले माह का विषय दिया जाता था जिस पर चार लाइन लिखकर आनी होती थी एक बार मैं ग्याहर वर्ष की उम्र में लिखकर गया जिसे सराहना मिली तो आज तक क्रम जारी है। उन्होंने कहा कि जब से इंटरनेट पर यूनिक कोड का इस्तेमाल होने लगा तब से विदेश में रहने वाले भारतीयों के लिए काफी आसानी हो गई है। विदेशों में हिन्दी को लेकर काफी सम्मान है तथा सभी उसे सम्मान देने के लिए लालायित भी नजर आते है। तथाकथित साहित्यकारराकेश खंडेलवाल ने कहा कि वांशिगटन में उत्तर भारत के लोग आज भी कविता को लेकर धीर गंभीर है। उनकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि व्यंगकार के रुप में तेजी के साथ साहित्यजगत में शामिल हो रहे फूहड़ रचनाकारों को कार्यक्रम के बीच में ही यह कहकर मंच से उतार दिया जाता है कि कुछ अच्छी रचना हो तो सुनाए अन्यथा रहने दीजिए।
1 comments:
अपनी मिटटी की खुश्बू एहसास अलग ही देती है
इसकी मीठी यादें कुछ उल्लास अलग ही देती हैं।
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