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Tuesday, January 18, 2011

सिपाही की सीटी का स्वर संविधान का स्वर है - स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज





20 जनवरी को दीक्षा देंगे स्वामी अवधेशा नंद जी गिरी जी महाराज
रामस्वरुप साहू
शाहगंज / जैत  - लोकमंगल एवं सकलधरा का दर्द भंजन करने ,अपने चित्त को शांत करने को व्याकुल हैं ऐसे लोगों  निर्भयता की प्राप्ति हो इस निमित चतुर्थ दिवस अपने कपाट खोलते हुऐ मां सुंदरदेवी कथा समिति के तत्वाधान में  विश्वप्रसिद्व संत जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेवर स्वामी अवधेशानन्द गिरीजी महाराज ने नर्मदा के पावन तट पर कहा कि अक्सर अपने से बात करने का अवसर मिलता है , संयम का हथोड़ा ओर विवेक की छैनी लेकर धरा पर कुछ भी गढ़ लो । मन की स्थितियों को कल्पनाओं के सुखद पंख लगाते हुऐ उड़ते हुऐ ,विचारों के ताने वाने स्वप्निल संसार की योजनाऐं बनाते हैं । मन की 2 स्थिती हैं मन वर्तमान में बहुत कम रहता है । संवाद अपने से कर सके यह तभी हो सकता है जब आप वर्तमान में जिऐं । मन का पहला बैरी  आलस्य है जो हमें वर्तमान में नहीं रहने देता । गोस्वामी तुलसीदास ने अपने में लौटकर वर्तमान में संवाद किया है । कभी-कभी उपस्थिति भयानक होती है,कभी-कभी किसी की उपस्थिति  बिना साधन के सिद्वि दे देती है । हम संबधों ओर संबधियों के बीच रहते हैं । संबध प्रकृति से है और प्रकृति का धर्म है देना , एक सार्वभौम स्वीकृति पैदा करो । भगवा वस्त्र बहुत सम्मानीय है । ऐसे महात्माओं का संग करें जिसे दोष निकल जाये । अच्छे लोगों के साथ रहने से अच्छा परिवेश मिलता है ,उनके साथ रहें जिनका अंतकरण शुद्व हो । धन्य वही है जिसके हिस्से दूसरों के लिए हैं । धर्म यही है कि हम परोपकार करें । जो दूसरों के मन में प्रसन्ता भर देते हैं,जो किसी के अज्ञान का हरण कर लें । सज्जन व्यक्ति वह है जो दूसरों के हिस्सा नहीं छीनते ,हमारे पास हिस्सा हैं,माता,पिता,भाई,बहन,गुरू,संबधियों एवं समाज के किसी के हक हुकुक न छीने जावें,यह हिस्से,समय,अर्थ,ज्ञान के हैं । उच्चता की अनुभूति तब होती है जब आपने पारमार्थिक कार्य किया होगा । सबसे पुरानी किताब वेद ग्रंथ है । आदमियत पैदा होने के समय का ग्रंथ है ऋगवेद । 
होहि वही जो राम रचि राखा
गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऋषियों को चिंतित होते हुऐ देखा है वामदेव, जावली,भारद्वाज वशिष्ठ,विश्वामित्र आदि को । लेकिन रामचरित्र मानस में 2 ऋषि छाये रहे वे हैं गुरू वशिष्ठ, और विश्वामित्र यदि दोनों संतों को निकाल दे तो श्रीराम एंकागी हो जायेंगें ।  गुरू वशिष्ठ का अंतकरण निश्चल है ,उन्होंने पूरा ज्ञान सुरक्षित रखा था । विश्वामित्र का नाम कौशिक था । गुरू वशिष्ठ दशरथ जी से  षिक्षा दीक्षा एवं  संसार के उद्वार के लिए भगवान राम को अपने वन के आश्रम ले आते हैं । गुरू वशिष्ठ, ने राम को पूरा ज्ञान दिया आकर किसी को यह ज्ञान नहीं दिया था राजा दशरथ को भी नहीं । हालांकि दशरथ के प्रति राम की आषक्ति थी ,दशरथ को राम के प्रति मोह के कारण प्राण तक त्यागने पड़े हैं । 
ताड़का वध प्रसंग
जब गुरू विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर वन में प्रवेश करते है। तो उन्हें 3 दिन वाले मार्ग की जगह 6 माह वाले मार्ग बताया जाता है । जबकि ढंग से चलने पर यह मार्ग डेढ़ दिन का ही था । गुरू विश्वामित्र ने इस मार्ग को निष्कंटक करने के आदेश राम जी को दिए । आश्रमों ओर मठों की अव्यवस्था का नाम है ताड़का ,हमारे संकल्प बाधित हो जायें उस अवस्था का नाम है ताड़का । उस समय ऋषि मुनि असंगठित थे  । लंकापति रावण के स्पष्ट निर्देश थे कि राजा दशरथ ओर ऋषिमुनियों के बीच संवाद स्थापित न होने पाये । निशाचरों ने सूचना एवं संचार भंग कर रखा था । निश्चरों से भयभीत होकर  ऋषिमुनि राजा के पास भागे । श्रीराम जी ने यहॉं ताड़का का वध किया एवं मार्ग को ठीक करने के लिए एक तीर ही काफी था संदेश रावण तक पहॅचाने के लिए । यह प्रभु श्रीराम का ही गुण था कि उन्होंने अपराध स्वीकार करने वाले सभी  निशाचरों को अपना लिया । 
अहिल्या उद्वार
  जंगल  में राम को वहॉं की वनस्पतियों से परिचित कराते हैं। साधु-सन्यासीयों का परिचय बताते हैं । लेकिन एक बड़े से आश्रम का परिचय नहीं कराते हैं । वहॉं  एक ऐसा विषालकाय आश्रम था जहॉं पर राम के पैर ठिठक गये । खगमृग,जीवजंतु,हरीतिमा,कुछ नहीं थी सूखा सरोवर एक चींटीं तक वहॉं नहीं थी । श्रीराम ने गुरू जी से पूछा पूरा कौतुक क्या है । इस पूरे आश्रम में पत्थर ही पत्थर दिखाई दे रहे हैं । एक बड़ी चट्टान दिखाई दे रही है। षिला संासे ले रही है । गुरू देव ने बताया कि यह चट्टान गौतम नारी श्राप वश बुत बन गई है । उन्होंने बताया कि इन्द्र अपना संयम खो बेठे थे रात्रि में गौतम बनकर आये ओर  चन्द्रमा की सहायता से मुर्गा की बांग अर्धरात्रि में दे दी भ्रमित गौतम ऋषि नदी किनारे पहॅच गये एवं इन्द्र  अहिल्या का स्पर्श कर ही रहे थे कि अनिष्ट के अंदेशा से गौतम वापस आ गये । इन्द्र के भेष बदलने के साथ ही अपने दो दो पति देखे तो अहिल्या कुछ समझ ही न पाई । वहीं गौतम क्रोध से तमतमा गये अहिल्या की एक भी सफाई न सुनी । वह मुस्कान गौतम को भयानक दर्द दे गई । उनके श्राप से इन्द्र कोढ़ी हो गये । गौतम आवेश नहीं संभाल सके और मुझे श्राप देते पत्थर बनने का श्राप दे दिया । अहिल्याा के पूछने पर गौतम ने बताया कि अब तेरा उद्वार भगवान राम ही करेंगे । राम के चरण स्पर्श से अहिल्या सबला बन गई । राम ने जब अहिल्या से उसकी इच्छा पूछी तब उसने कहा भगवान से कहा कि मुझे सिर्फ मेरे पति का संग चाहिए  । श्री राम जी ने गंगा स्नान कर जनकपुर की ओर प्रस्थान किया । अंत में रामायण जी की आरती गई जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी धर्म पत्नी साधना सिंह स्वागत समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह चौहान के अलावा विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी,भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा,संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा,जयंत मलैया,नागेन्द्र सिंह ,कन्हैयालाल अग्रवाल,सुधा मलैया,पूर्व सांसद रामपाल सिंह,गौ संवधर्न बोर्ड के उपाध्यक्ष शिव चौबे ,रमाकान्त भार्गव, बिल्डर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिलीप सूर्यवंशी विधायक अजय विश्नोई,रामकिशन चौहान,रामेश्वर शर्मा, राजो मालवीय,रोहित चौहान,रामसेवक पटेल,महेन्द्र शर्मा,आजाद सिंह राजपूत,वीर सिंह चौहान, महेश  उपाध्याय,पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जसपाल अरोरा , डा. पीसी साहू ,महेन्द्र भाउ,बुलन्दर चौहान,मुन्ना पटेल,मदन गुरू, पवन विजयवर्गीय,अजय शर्मा,नगेन्द्र शर्मा ,बृजेन्द्र चौहान,रघुवीर पटेल,सुनील गौर,शिवानी यादव,हेमलता राठौर,अनिता चौहान, भगवत पटैल,आनंद श्रीवास्तव,नरेश त्रिवेदी,शाहगंज नगर पंचायत अध्यक्ष चन्द्रकला मेहरा, आदि ने आरती में भाग लिया । आरती के बाद सभी बाहर से आए हुए अतिथियों एवं श्रद्वालुओं के लिए मां सुंदरदेवी कथा समिति के प्रतिदिन चलने वाले भंडारे में भारी संख्या में श्रद्वालुओं ने भोजन प्रसादी ग्रहण की ।
राम कथा के दौरान स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज के सद्विचार -
    पॉंच चीजो से मिलकर भगवान बने हैं भूमि,अग्नि,अंबर,नीर एवं वायु से ।
    नर-नारी एक समान यही भारत की पहचान ।
    घर की नारी दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती है ।
    गंगा के स्नान का,यमुना के आचमन का है एवं नर्मदा के दर्शन से हम धन्य हो जाते हैं ।
   



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