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Sunday, February 13, 2011

भगवान श्रीराम जन-जन के नायक है-स्वामी रामकमलदास वेदांती महाराज काशी

सीहोर। समाज में राम के आदर्श इस प्रकार प्रसारित होने चाहिये कि वे केवल ज्ञान विलास की वस्तु बनकर ही न रह जायें, बल्कि ये आदर्श, व्यक्ति के चरित्र में सम्माहित हों। जब तक मनुष्य में दैवीय गुण जाग्रत नहीं होंगे, उनमें मानवीयता का भाव नहीं आयेगा। हमारी संस्कृति में भगवान श्रीराम को जन-जन का नायक माना गया है। उक्त उद्गार ग्राम बरखेड़ा हसन में कथा के दूसरे दिन शनिवार को बजरंग वाहिनी समिति एवं मानस प्रचार समिति बाजार बरखेड़ा हसन के तत्वाधान में मानस सम्मेलन में संगीतमयी श्रीराम कथा को संबोधित करते हुए रामकमल दास वेदांती महाराज काशी ने कही।
उन्होंने कहा कि श्रीराम में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के गुण विराजमान हैं। मनुष्य रूप में उनके जैसे स्थितप्रज्ञ व्यक्ति विरले ही मिलते हैं। भगवान श्रीराम ने जन-सामान्य को स्वतंत्रता से अधिक मर्यादित जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने सदैव कर्तव्यों का निर्वाह करने का आदर्श प्रस्तुत किया। यह बात उनके चरित्र में इस तरह प्रकट होती है कि वे अपनी प्रजा की आकांक्षाओं को देखते हुए अपने पारिवारिक सुखों का त्याग करने से भी नहीं चूके। वर्तमान में भारतीय समाज में संयुक्त परिवार टूटने लगे हैं। केवल कानून के भरोसे समाज को बचाना कठिन कार्य है। साधु-संतों को समाज में श्रीराम का चरित्र इस तरह प्रसारित करना चाहिये, जिससे लोगों में चारित्रक उत्थान और परस्पर जवाबदेही का भाव बढ़े। स्वामी जी ने आगे कहा कि रामकथा भारतीय संस्कृति का प्राण है। चिरकाल से हमारे देश में रामकथा का श्रवण और गायन होता रहा है। प्रभु श्रीराम के चरित्र को जिसने जैसा देखा वैसा ही वर्णन किया। उन्होंने कहा कि विदेशी शासनकाल में भी श्रीराम की सत्ता पर कोई विपरीत असर नहीं डाल सका। उल्टा श्रीराम की सत्ता को अस्वीकार करने वालों का ही पराभव हुआ। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास का कथा वर्णन सरल और गूढ़ है। संत परम्परा में रामकथा के गायन और वाचन में भक्ति, ज्ञान और कर्म का अद्भुत समन्वय है। प्रभु श्रीराम हर मानव के भीतर मौजूद हैं। राम का चरित्र प्रेरणादायक है। उनको जानना, समझना और आचरण में उतारना मानव जीवन का कर्तव्य है। लेकिन राम का दर्शन तभी हो पाएगा जब हम पूर्ण सद्गुरु की कृपा से सूक्ष्म जगत में जाएंगे। उन्होंने कहा कि मनुष्य अधिक पुण्य न करे, तो कोई बाधा नहीं है लेकिन उसे पाप भी नहीं करना चाहिए। ज्ञानी को यह जगत आनंदमय लगता है जबकि अज्ञानी को यह जगत बिगड़ा हुआ।
कथा का रसपान कराते हुए कहा कि भगवान श्रीराम का चरित्र मर्यादा पुरूषोत्तम का चरित्र है तथा राम के रूप में भगवान ने समाज को यह बतलाया है कि एक पुत्र का पिता के प्रति, भाई का भाई के प्रति, पत्नी का पति के प्रति, स्वामी का सेवक के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य है। भगवान राम ने सभी संबधों के प्रति दायित्व निवर्हन का पाठ समाज को पढ़ाया है। वर्तमान समय में समाज एवं शासन चलाने वाले व्यक्तियों को भगवान राम के चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए जिससे सही प्रकार से समाज एवं सरकार का संचालन हो। भगवान राम राजा के रूप में अपनी प्रजा को अपना इष्टदेव मानते थे तथा श्रीमद्भागवत आध्यात्मिक कथा है। जो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में चलती रहती है।

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