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Thursday, January 10, 2013

मुख्यमंत्री की पहल पर शीत लहर/पाला शामिल हुआ आपदा सूची में
राजस्व विभाग ने वर्ष 2012 में लिए बड़े जन-हितैषी फैसले, आर.बी.सी. 6-4 में राहत राशि में भारी वृद्धि
 
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह की पहल पर केन्द्र सरकार ने वर्ष 2012 में शीत लहर/पाला को आपदा सूची में शामिल किया। राज्य शासन ने राजस्व पुस्तक परिपत्र (आर.बी.सी.) 6-4 में संशोधन कर प्राकृतिक प्रकोपों में जन हानि, फसल हानि सहित विभिन्न मदों में दी जाने वाली राहत राशि में उल्लेखनीय वृद्धि की।
प्रदेश के 708 मजरे-टोलों को राजस्व ग्राम बनाने की कार्यवाही शुरू हुई। एक अप्रैल से 9 नई तहसील के गठन के बाद प्रदेश में तहसील की संख्या बढ़कर 352 हुई। वन्य-प्राणियों से फसल हानि होने पर किसानों को मुआवजा देने के लिए आर.बी.सी. 6-4 में संशोधन किया गया। तहसीलों के रिकार्ड रूम के कम्प्यूटरीकरण के साथ ही 300 नायब तहसीलदार की नियुक्ति की गई। वर्ष 2012 में पटवारी भर्ती के लिए प्रदेश को प्रतिष्ठित ‘मंथन अवार्ड-साउथ एशिया एण्ड पेसिफिक एशिया’ मिला। राजस्व प्रकरणों के निराकरण के लिए राजस्व निरीक्षक मंडल और तहसील स्तर पर राजस्व समाधान शिविर लगाए गए। सभी जिलों में खसरा नकल और बी-1 दस्तावेज की इलेक्ट्रानिक कापी दी गई। मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में वास स्थान और आवासीय प्रयोजन के लिए भूमिहीन लोगों द्वारा किए गए कब्जे पर अभियान चलाकर भू-स्वामी अधिकार देने के निर्देश दिए गए।
मध्यप्रदेश में जनवरी 2011 में शीत लहर और पाले से फसलों को बड़े पैमाने पर हुए नुकसान के बाद श्री चौहान ने इसको प्राकृतिक आपदा में शामिल करने का मुद्दा जोर शोर से केन्द्र सरकार के समक्ष उठाया था। जुलाई 2012 में इसको आपदा सूची में शामिल करने का निर्णय लिया गया। शीत लहर और पाले से हुए नुकसान के लिए अब राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष के तहत गठित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एस.डी.आर.एफ.) से राहत सहायता की जा सकेगी।
लोक सेवा के प्रदाय गारंटी अधिनियम में राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा नक्शा खसरा की प्रतिलिपि, भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिकाओं के प्रदाय, वन्य-प्राणियों से हुई फसल हानि के कारण राहत भुगतान, बी-1 खतौनी की प्रतिलिपियों का प्रदाय, प्राकृतिक प्रकोप से हुई शारीरिक अंग हानि अथवा मृत्यु होने पर आर्थिक सहायता दिये जाने, डुप्लीकेट ऋण पुस्तिकाओं के प्रदाय, नजूल अनापत्ति प्रमाण-पत्र तथा शोध क्षमता प्रमाण-पत्र जारी किये जाने के सर्वाधिक 2 लाख 48 हजार 460 आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से 2 लाख 22 हजार 801 आवेदन-पत्र का निराकरण समय-सीमा में किया गया।
राजस्व न्यायालयों द्वारा राजस्व प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिये मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता में वर्ष 2012 में महत्वपूर्ण संशोधन किये गये है। सुनवाई की तिथियों को बार-बार बढ़ाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिये सुनवाई की अधिकतम सीमा तीन बार तक सीमित की गई है। अब अपीलीय अधिकारी राजस्व मामलों की रिमाण्ड नहीं कर सकेंगे और उन्हें स्वयं आदेश पारित करना होंगे। इससे विलम्बित न्याय में काफी कमी आएगी। इसी तरह वर्ष 2012 में अपील की अवधि भी कम कर दी गई है। अब उप खण्ड अधिकारी या कलेक्टर या बन्दोबस्त आयुक्त को 30 दिन में, आयुक्त को 45 दिन और राजस्व मंडल को 60 दिन में अपील करनी होगी। पुनर्विलोकन की अवधि भी 60 दिन कर दी गई है।
पहले अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का निष्पादन वरिष्ठ न्यायालयों से स्थगनादेश प्राप्त कर रोक दिया जाता था, जिससे अनावश्यक विलम्ब होता था। अब यह निष्पादन अधिकतम एक बार में तीन माह के लिये ही रोका जा सकेगा। नियमित तिथियों पर गवाही हो सके, इसके लिये भी धारा 34 में संशोधन किया गया है। नियत तिथि पर साक्षी के उपस्थित न होने पर उस पर 1000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा। इसी तरह सरकारी भूमि की अफरा-तफरी पर भी प्रभावी रोक लगाई गई है।
शासकीय भूमि पर अतिक्रमण रोकने के लिये अर्थ दण्ड को अतिक्रमित भूमि के बाजार मूल्य के 30 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। वनों से लकड़ी चोरी रोकने के लिये जुर्माने की राशि 50 हजार रुपये तक की गई है। इसी तरह, खनिज चोरी रोकने के लिए अवैध खनन पर जुर्माना निकाले गये खनिज के मूल्य के 4 गुना तक बढ़ाया गया है। गाँवों में आम रास्तों पर बाधा उत्पन्न करने पर 10 हजार रुपये तक जुर्माना और बाधा न हटाने पर एक हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों को देय भू-राजस्व में संशोधन किया गया है। भूमि का व्यपवर्तन करने पर लघु एवं सूक्ष्म उद्यम में उपयोग की जा रही भूमियों से उन पर देय भू-राजस्व से आधी राशि ली जाएगी।
एक अप्रैल 2012 से प्रदेश में 9 नई तहसीलें अस्तित्व में आईं। ये हैं- शहडोल जिले की बुढ़ार और गोहपारू, नीमच जिले की रामपुरा, छिंदवाड़ा जिले की चांद, बालाघाट जिले की बिरसा, सिंगरौली जिले की सरई और माड़ा, अलीराजपुर जिले की कट्ठीवाड़ा और सोण्डवा। इससे पूर्व टीकमगढ़ जिले की लिधौरा तहसील भी वर्ष 2012 में ही बनी। वर्ष 2012 में बनी इन तहसील को मिलाकर पिछले चार साल में प्रदेश में 2 नए संभाग, शहडोल और नर्मदापुरम्, 2 नए जिले अलीराजपुर और सिंगरौली और 80 तहसील अस्तित्व में आईं।
अप्रैल 2012 में ही आपदा पीड़ित किसानों को अधिक राहत देने के लिए आर.बी.सी.6-4 के प्रावधानों में संशोधन कर राहत राशि में भारी वृद्धि की गई। मृत व्यक्ति के परिवार को एक लाख रुपये के स्थान पर डेढ़ लाख, अंग-भंग की स्थिति में 35 हजार की जगह 43 हजार 500, 80 प्रतिशत से अधिक अंग भंग की स्थिति में 50 हजार की जगह 62 हजार 500 रुपये सहित अन्य आपदाओं में दी जाने वाली राशि में वृद्धि की गई।
ग्रामीण क्षेत्रों में पात्र रहवासियों को भूमि-स्वामी अधिकार दिए जाने के उद्देश्य से ‘मध्यप्रदेश ग्रामों की दखल रहित भूमि (विशेष उपबंध) अधिनियम 1970 में संशोधन करते हुए इसकी कट ऑफ डेट 23 जून 1980 से बढ़कर 31 दिसम्बर 2011 की गई। सर्वेक्षित परिवारों में से 15 हजार 858 परिवार को प्रमाण-पत्र जारी किया जा चुके हैं, शेष 65 हजार 537 प्रकरणों में कार्यवाही चल रही है।


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