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Wednesday, March 2, 2011

दान करने में संकोच नही करना चाहिए-बाल संत छोटे मुरारी बापू

धूमधाम से किया भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक
सीहोर। मंगलवार को कथा के अंतिम दिन राम का राज्याभिषेक किया गया। भगवान राम के राज्याभिषेक के दौरान उपस्थित श्रद्धालु भाव-विभोर होकर नृत्य करने लगे। इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन देते बाल संत छोटे मुरारी बापू ने कहा कि दरिद्रता की शंका से मूर्ख व्यक्ति दान-पुण्य करने में संकोच करते हैं,। जबकि प्राज्ञ तो अनेक जन्मों के सुख स्वरूप फल प्राप्ति के लिए दान देने में हिचकिचाते नहीं है। जो व्यक्ति दान देने में सक्षम होने के बाद भी दान नहीं करता है वह अतपस्वी व दरिद्र कहलाता है। स्कन्द पुराण में ऐसे व्यक्ति को महा पापी बता कर कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को एक बड़ी शिला बांध कर जल में छोड़ देना चाहिए। जब तक मानव दान करना नहीं सीखता तब तक उसके हृदय रूपी घर में अंधकार है उसे दानरूपी दीपक बिना नहीं निकाला जा सकता है, क्योंकि जब तक हाथ में दीपक नहीं है तक तक उसके घर में रखा धन भी नहीं दिखाई देता है। श्रीराम कथा के बाद भगवान राम की आरती उतारकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया। नगर के सिंधी कालोनी में आयोजित नौ दिवसीय दिव्य संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिवस बाल संत श्री छोटे मुरारी बापू ने कहा कि मानव जीवन अनमोल आज का मनुष्य भौतिकता में इतना लिप्त हो गया है कि वह अपना मानव जीवन व्यर्थ खो रहा है। मूल लक्ष्य से भटक कर भौतिकता की चकाचौंध में गुम हो गया है। मनुष्य ने भागदौड़ करके भले की भौतिक सुख के साधन जुटा लिए पर आत्मिक सुख शांति के दूर होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि मानसिक अशांति का मुख्य कारण मनुष्य का आध्यात्मिक रुप से जागृत नहीं होना है। भक्ति के बिना जीव का कल्याण संभव नहीं है। जो इंसान प्रभु भक्ति में रंगे होते है उनके जीवन में सादगी, सच्चाई और मन में निर्मलता स्वयं आ जाती है। गुरु के द्वारा ब्रह्मïज्ञान की प्राप्त करके ही यह मन स्थिर होता है फिर इंसान जीवन में आने वाले प्रत्येक उतार चढाव को सहज स्वीकार कर लेता है व प्रभु इच्छा समझकर विचलित नहीं होता। संत श्री ने कहा कि रावण ने युद्ध के अंतिम चरणों के दौरान अपने भाई कुंभकरण को जागने का प्रयास किया। कुंभकरण नींद से जागने के पश्चात अपने भाई के पास गया। इस अवसर पर कुंभकरण ने अपने भाई रावण से कहा कि मुझे कोई उठाया है। तब रावण ने कहा कि में सीता का हरण कर के लाया हूं। तब उनके भाई कुंभकरण ने कहा कि रावण तू महामूर्ख है तूने साक्षात जगत माता का हरण किया है। तुझे अब कोई नही बचा सकता। लोगों के लाख समझाने और उपाय बताने के बाद भी रावण ने किसी की नही सूनी और अंत में भगवान श्रीराम के हाथों उसका वध हो गया। कथा के अंत में महाप्रसादी का वितरण किया गया।

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