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Sunday, March 13, 2011

श्रवण के माता-पिता का श्राप के कारण दशरथ की मृत्यु हुई -डॉ.रामकल दास वेदांती महाराज

संगीतमय श्रीराम कथा में आठ वर्षीय बालक के प्रवचन भी जारी
सीहोर। शाम का समय था पर न जाने क्यों राज दशरथ के मन में शिकार पर जाने का विचार उठा और धनुष बाण ले रथ पर सवार हो शिकार के लिये चल दिए। जब सरयू नदी के तट के साथ-साथ रथ में सवार होकर जा रहे थे। अचानक शब्द सुनाई पड़ा मानो वन में हाथी गरज रहा हो। किन्तु वास्तव में वह शब्द जल में डूबते हुये घड़े का था। हाथी को मारने के लिये मैंने तीक्ष्ण शब्दभेदी बाण छोड़ा। जहाँ वह बाण गिरा वहीं जल में गिरते हुये मनुष्य के मुख से निकला, हाय मैं मरा! मुझ निरपराध को किसने मारा? हे पिता! मे माता! अब तुम जल के बिना प्यासे ही तड़प-तड़प कर मर जाओगे। हाय किस पापी ने एक ही बाण से मेरी और मेरे माता-पिता की हत्या कर डाली। उक्त उद्गार सिंधी धर्मशाला के समीप हो रही संगीतमय श्रीराम कथा के चौथे दिन शनिवार को डॉ.राम कमल दास वेदांती महाराज ने कहे। यहां पर भिंड से पधारे आठ वर्षीय बालक गोपाल माधव शर्मा ने रामचंद्र के बालपन के बारे में यहां पर उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया। श्रीराम कथा के दौरान शनिवार को सर्व प्रथम श्रीराम चंद्र कुपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम। नव कंज लोचन, कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणम और सीता-राम-राजाराम के भजनों के संगीतमय भजनों से शुरूआत हुई। इस अवसर पर कैकई के बारे में, राम भरत के बारे, पुत्र का धर्म क्या है। माता-पिता के प्रेम के बारे में स्वामी जी ने चर्चा की।
स्वामी जी ने आगे कहा कि श्रवण के पिता के यह वचन सुन कर डरते-डरते कहा, महामुने! मैं अयोध्या का राजा दशरथ हूं। मैंने हाथी के धोखे में अंधकार के कारण तुम्हारे निरपराध पुत्र की हत्या कर दी है। अज्ञान के कारण किये हुये इस पाप से मैं बहुत दु:खी हूँ। अब उसके दण्ड पाने के लिये तुम्हारे पास आया हूँ। हे सुभगे! पुत्र की मृत्यु का समाचार सुन कर दोनों विलाप करते हुये कहने लगे  यदि तुमने स्वयं आकर अपना अपराध स्वीकार न किया होता तो मैं अभी शाप देकर तुम्हें भस्म कर देता और तुम्हारे सिर के सात टुकड़े कर देता। अब तुम हमें हमारे श्रवण के पास ले चलो। मैं उन्हें लेकर जब श्रवण के पास पहुँचा तो वे उसके मृत शरीर पर हाथ फेर-फेर कर हृदय-विदारक विलाप करने लगे। फिर अपने पुत्र को जलांजलि देकर मुझसे बोले हे राजन जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में घोर कष्ट उठा कर मरोगे। इस प्रकार शाप देकर उन्होंने अपने पुत्र की चिता बनाई और फिर स्वयं भी वे दोनों अपने पुत्र के साथ ही चिता में बैठ जल कर भस्म हो गये।
स्वामी जी ने आगे कहा कि श्रवण के पिता के यह वचन सुन कर राजा दशरथ ने डरते-डरते कहा, महामुने! मैं अयोध्या का राजा दशरथ हूं। मैंने हाथी के धोखे में अंधकार के कारण तुम्हारे निरपराध पुत्र की हत्या कर दी है। अज्ञान के कारण किये हुये इस पाप से मैं बहुत दु:खी हूँ। अब उसके दण्ड पाने के लिये तुम्हारे पास आया हू। पुत्र की मृत्यु का समाचार सुन कर दोनों विलाप करते हुये कहने लगे यदि तुमने स्वयं आकर अपना अपराध स्वीकार न किया होता तो मैं अभी शाप देकर तुम्हें भस्म कर देता और तुम्हारे सिर के सात टुकड़े कर देता। अब तुम हमें हमारे श्रवण के पास ले चलो। मैं उन्हें लेकर जब श्रवण के पास पहुंचा तो वे उसके मृत शरीर पर हाथ फेर-फेर कर हृदय-विदारक विलाप करने लगे। फिर अपने पुत्र को जलांजलि देकर मुझसे बोले राजा दशरथ, जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में घोर कष्ट उठा कर मरोगे। इस प्रकार शाप देकर उन्होंने अपने पुत्र की चिता बनाई और फिर स्वयं भी वे दोनों अपने पुत्र के साथ ही चिता में बैठ जल कर भस्म हो गये। इसके बाद राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र के वियोग में हुई।
लक्ष्मण शेषनाग है
स्वामी जी ने कहा कि रामायण में विष्णु अवतार भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का अवतार बताया गया है। पृथ्वी शेषनाग के सिर पर रखी है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि पाप कर्म बढ़ते हैं तो शेषनाग क्रोधित होकर फन हिलाते हैं और इससे पृथ्वी भी डगमगा जाती है। इस अवसर पर स्वामी जी ने कैकई और लक्ष्मण के बारे में वर्णन किया।

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