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Thursday, March 17, 2011

मनुष्य का अंतिम सहारा भगवान ही होता है। डा.रामकमल दास वेदांती महाराज

सीहोर। सारे संसार को भगवान ने धारण कर रखा है। राष्ट्र, समाज, परिवार और व्यक्ति का भार भगवान ने उठा रखा है। भगवान का जन्म धर्म की स्थापना के लिए और अधर्म का विनाश करने के लिए हुआ है। मनुष्य का अंतिम सहारा भगवान ही होता है। व्यक्ति पर जब कोई भी संकट होता है तो वह केवल और केवल भगवान की शरण में ही जाता है। मनुष्य को नित्य भगवान की पूजा-अर्चना करते रहना चाहिए। क्योंकि दाता एक राम, भिखारी सारी दुनियां उक्त विचार सिंधी धर्मशाला के समीप चल रही संगीतमय श्रीराम कथा के आठवें दिन यहां पर बड़ी संख्या में आए भक्तों और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए डॉ.रामकमलदास वेदांती महाराज ने कहे। बुधवार को उन्होंने हनुमान जी की भगवान श्रीराम से विदाई का वर्णन करते हुए कहा कि हर तरफ विदाई की वेला चल रही थी। ऐसे में राम भक्त हनुमान की विदाई कौन करे। सभी धर्म संकट में है। किसी की हिम्मत नही हो रही थी। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि राम भक्त हनुमान के दिल में श्रीराम रहते है। उन्होंने शरणागत के लक्षण बताए। इस अवसर पर दरबार हजारों देखे है, लेकिन ऐसा कोई दरबार नही के संगीतमयी भजन पर लोगों ने परम आनंद लिया। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि दाता एक राम भिखारी, सारी दुनियां। संसार में दाता एक ही है। वह है श्रीराम। स्वामी जी ने साधना की सफलता के बारे में बताया। उन्होंने भरत की साधना के बारे में उदाहरण देते हुए कहा कि राजा भरत की साधना क्यों पूरी नही हो रही थी। साधना को सफलता में तब्दील करने का मंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि साधना करने वालों को अपनी साधना गुप्त रखना चाहिए। उसका प्रदर्शन करने से साधना भंग हो जाती है। सफल नही हो पाती है। डॉ.रामकमल दास वेदांती महाराज ने कहा कि व्यक्ति अज्ञान व अहंकार को छोड़ दे तो वह अपना जीवन सुख-शांति से व्यतीत कर सकता है। व्यक्ति को प्रभु की कृपा का अनुभव करते रहना चाहिए। समाज व राष्ट्र के लिए सबको अपना-अपना योगदान देना चाहिए। मनुष्य को जीवन में हमेशा अच्छे लोगों का ही साथ देना चाहिए। मनुष्य जीवन में उत्तम कर्म का होना अत्यंत आवश्यक है। उसे अच्छे कर्म करना चाहिए जिससे उत्तम भाग्य बन सके। मनुष्य के जीवन में लोभ मोह के कारण पाप होते हैं। पाप ही मनुष्य के दुखों का कारण है, इसलिए लोभ मोह से बचें।
बुधवार को स्वामी जी ने कहा कि गुरू की आज्ञानुसार भरत ने पिता का दाह संस्कार एवं विधिवत संपूर्ण अन्त्येष्टि क्रिया की। उसके पश्चात सभी को लेकर अपने भाइयों की तलाश में भटक रहे थे। भगवान श्रीराम का विश्राम स्थल देखकर भरत बहुत दुखी हुए। भरत के हृदय में गहरा दुख हो रहा था। दुखों के साथ आगे जा रहे थे। गंगा किनारे पहुंचकर केवट से श्रीराम के बारे में पूछा और उसने राम-लक्ष्मण माता सीता का विशद वर्णन करते हुए कहा। मैं धन्य हो गया, कृतकृत्य हो गया। उनकी कृपा से मेरा जन्म सफल हो गया। स्वामी जी ने भरत के बारे में अनेक शिक्षा दी।
साधना और आराधना के बारे में
स्वामी जी ने भगवान की आराधना, साधना, भगवद नाम स्मरण जप-तप भगवद प्राप्ति के सरल साधन हैं। पशु-पक्षी को आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान प्राप्ति करना संभव नहीं है। लेकिन हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जन्म द्वारा यह अवसर मिला है। समय रहते मानव जन्म की उपयोगिता को समझो और ऐसे कर्म करो जो हमारी मति और गति को सुधारें और अगला जन्म भी सफल हो सके। बुधवार को विधायक रमेश सक्सेना सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। गुरुवार को संगीतमय श्रीराम कथा का अंतिम दिन है।

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