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Saturday, December 25, 2010

ईश्वर प्रेम के आगे महलों का सुख बेकार है-गोविद जाने

संगीतमय भजनों पर श्रद्धालुओं ने किया जमकर नृत्य
सीहोर। जो व्यक्ति हर वक्त कसम खाए ऐसे व्यक्ति पर कभी भरोसा न करना, क्योंकि कमजोर झोपड़ी में ही ठेके लगाए जाते है। हमारे एक प्रिय भक्त ने आकर हमसे कहा गुरु जी एक ऐसा मकान बनाया है कि सात पुश्तों तक उसका रंग भी नही निकलेगा। गुरु जी ने पूछा कि कितने वर्ष और जीना है तो ऐसे भौतिक सूखों की लालसा में जीवन क्यों व्यर्थ नष्ट कर रहे हो। जीवन का महत्व समझे। उक्त उद्गार नगर के सिंधी धर्मशाला के समीपस्थ मैदान पर गोदान सरकार सेवा समिति के तत्वाधान में जारी श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार को दूसरे दिन विशाल जन समुदाय को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध संत गोविन्द जाने ने कहे। उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में सत्य और कर्म सर्वश्रेष्ठ है। हमें ऐसा कार्य और कर्म करना चाहिए जिससे हमें सात पुश्तों तक सम्मान से जमाना याद रखे। उन्होंने आगे सत्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।
हिन्दू धर्म का महत्व
उन्होंने कहा कि वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।
सनातन धर्म के मूल तत्व
संत श्री गोविन्द जाने ने कहा कि सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था।
मुझे सत्य की ओर ले चलो
संत श्री ने कहा कि अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो। जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।
राम का उदाहरण
संत श्री ने राम का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे हमारे प्रभु राम ने सत्य का मार्ग का अनुसरण किया तो पूरी सृष्टिï के प्राणियों ने उनका साथ दिया। जो व्यक्ति सत्य की सत्ता को समझ कर धर्म मार्ग पर चलने का हौंसला रखते है। यह सृष्टिï के सभी प्राणी आपके कदम-कदम पर साथ देते नजर आऐंगे। हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम की सेना में वानरों, भालू आदि ने सभी ने साथ दिया। जिसके कारण अहंकार रूपी रावण की पूरी सेना का विनाश करने में अधिक समय नही लगा। असत्य पर चलने वाले रावण का साथ सत्य रूपी विभीषण ने भी छोड़ दिया। सत्य की भांति दूसरा धर्म नही है। सत्य मार्ग पर चलने वालों का बाल भी बांका नही हो सकता है।
मीरा का उदाहरण
संत श्री ने मीरा का उदाहरण देते हुए कहा कि मीरा का प्रेम आज भी अमर है और जब तक सृष्टिï है रहेगी उसका प्रेम नाजिर बनकर रहेगा। मीरा ने ईश्वर से प्रेम किया और सांसरिक सुख-वैभव से प्रभावित नही होकर ईश्वर से सात्विक रूप से लगी रही। राणाजी की बेशुमार दौलत और महलों का सुख छोड़कर मीरा ईश्वर की भक्ति और प्रेम में ऐसी दीवानी हुई कि अंत में विग्रह में सशरीर समा गई। इससे बड़ी और दौलत क्या हो सकती है।


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