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Sunday, December 26, 2010

अहंकार भक्ति में सबसे बड़ा बाधक है-गोविन्द जाने

सीहोर। श्रीमद भागवत कथा सुनाते हुए संत श्री गोविन्द जाने ने कहा कि अहंकार, भक्ति में सबसे बडा बाधक है। जीव के अहंकार का कारण चाहे वस्तु हो या व्यक्ति, भगवान उसे नष्ट कर देते हैं। इन्द्र को भी अहंकार हुआ। बृजवासियों द्वारा पूजा नहीं किये जाने से नाराज इन्द्र ने अति वृष्टि की। इन्द्र का अहंकार नष्ट करने के लिए भगवान ने गोवर्धन उठाकर बृज के लोगों की रक्षा की। इन्द्र को अपनी लघुताका बोध हुआ और वह भगवान के चरणों में गिर पडा। नगर के सिंधी धर्मशाला स्थित गोदान सरकार समिति के तत्वाधान में जारी संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के दौरान प्रदेश के प्रसिद्ध संत श्रीगोविन्द जाने ने आगे कहा कि श्रीकृष्ण के चरणों में गिरने वाले संसार का राजा बनते हैं। अति महत्वाकांक्षा व अहंकार दोनों ही जीव के लिए घातक है। उन्होंने कहा कि धर्म कहता है कि मनुष्य को अपने विवेक  के अनुसार भगवान की सेवा में जुटना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्यों में पांच तरह के प्राण होते हैं। इनमें प्राण, व्यान, उदान, समान और अपान शामिल है। रास भी पांचवें अध्याय में आता है। यह अध्याय भागवत का प्राण कहा जाता है। श्रीराधारानी कृष्ण की योग माया हैं। जिन गोपियों के संग भगवान ने रास किया वह सभी कृष्णगत प्राण हैं। गोपियां उनकी रस भावित मति हैं। गोपियों का सब कुछ अपने प्रियतम प्यारे कान्हा के चरणों में समर्पित था। भगवान के चरणों में सब कुछ समर्पित करने वाली गोपियां उनकी परम अन्तरंग लीला का अभिन्न अंग हैं।
संसार में दो स्थान सुरक्षित
उन्होंने कहा कि जब भी धरती पर प्रलय आई है। संसार में दो स्थान सुरक्षित रहे है। एक है वृन्दावन और दूसरा काशी इसलिए मैं कहता हूं कि यहां पर सत्य है का वास होता है। वही पर सृष्टि की बोलबाला होता है। यहां पर असत्य और अभिमान होता है वहां पर विनाश और गंभीर संकट बना रहता है। अभिमान जब समाप्त होता है, जब ज्ञान आता है। संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के दौरान यहां पर आए श्रद्धालु भजन और संगीत में ऐसे रम जाते है कि उनको परम आनंद के कारण नृत्य करने की इच्छा अपने आप उत्पन्न हो जाती है। भजनों पर मोह माया का त्याग कर अपने आप श्रद्धा पूर्वक महिला, बच्चों और पुरुषों नाचने लगते है।
फल की चिंता नही
भगवान की प्रार्थना से जहां मानसिक शांति मिलती है वहीं वातावरण भी शुद्ध होता है। कथा का रसपान करने मात्र से जीवन का कल्याण होता है।भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को प्रधानता देते हुए कहा है कि बिना फल की चिंता किए ही व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए। जीव अमर हो जाता है भगवान अपने प्रिय भक्त को संकट में देखकर रह नहीं पाते। वह उसके उद्धार के लिये नाना प्रकार के उपक्रम कर उसे विषय-भोग से मुक्त कर देते हैं। जिस पर उनकी कृपा होती है वह जीव अमर हो जाता है। सत्कर्म करने पर रोकना नही चाहिए सत्कर्म करने जा रहे व्यक्ति को रोकना नही चाहिए वह महापाप होता है। मंदिर जा रहे, तीर्थ जा रहे, प्रवचन सुनने जा रहे या
अन्य पुण्य कर्म करने जा रहे व्यक्ति को जाने से रोकने पर भयानक पाप लगता है। गरीब के बच्चों को वस्त्र देना पूजा है।
श्रीकृष्ण जन्म उत्सव आज
इस संबंध में गोदान सरकार समिति के पदाधिकारी ने बताया कि सिंधी धर्मशाला के समीपस्थ मैदान पर जारी श्रीमद् भागवत कथा में सोमवार को भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाएगा। उन्होंने सभी भक्तों से दूध, दही, मक्खन आदि जो भी श्रद्धा के रूप में ला सकते है वो प्रसादी लेकर आए।

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