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Monday, September 20, 2010

मैं प्रकृति है और हूँ परमात्मा है- पं पुरोहित


सीहोर। मैं हूँ इस शब्द में प्रकृति और परमात्मा विराजमान है। हम जब पुत्र के सामने जाते है पिता हो जाते हैं तथा जब पिता के सामने जाते हंै तो पुत्र हो जाते हैं, पत्नि के सामने पति तो बहन के सामने भाई बन जाते है। यहाँ पर मैं बदलता है पर हूँ नही बदलता है। मैं जो स्थान काल के अनुसार  बदलता है प्रकृति है और है वो परमात्मा है। मैं का अस्तित्व हूँ से है जब हम हूँ अर्थात परमात्मा के हो जाते हंै मैं और मेरा अपने आप समाप्त हो जाता है। उक्त उदगार प्रसिद्ध कथा वाचक महामंडलेश्वर पं अजय पुरोहित ने निकटस्थ ग्राम छतरपुरा में चल रही श्री महाभागवत कथा में व्यक्त किए। पं पुरोहित ने कहा कि मैं और मेरा ही प्रकृति या माया है और इस मैं और मेरा छोड़े बिना मायापति से भेंट असंभव है। उन्होने आगे बताया कि जब ब्रहा जी ने दक्ष को इस पृथ्वी का एकछत्र प्रजापति बनाया तो इस प्रजापति को मैं अर्थात अंहकार आया और दक्ष ने ब्रहम कथा मे भगवान शिव का अपमान किया। दक्ष ने स्वंय जब यज्ञ करवाया तो उसने अपनी उनसाठ पुत्रियो को आमंत्रण दिया पर अपनी पुत्री सती को न्योता नहीं दिया। सती का भगवान  श्ांकर  का मन न होते हुए भी यज्ञ में शमिल होने पिता के घर गई और वहाँ यज्ञ मंडप में अपने पति का भाग न देखकर कुपित हुईऔर यज्ञ अग्नि में अपनी काया भस्म कर दी। पश्चात भगवान शिव ने वीरभद्र को भेजा वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस करके दक्ष के शीश को उखाड़कर यज्ञ कुंड मे ंडालकर भस्म कर दिया। देवताओं इत्यादि ने जब शंकर जी से यज्ञ पूरा करने का अनुरोध किया तो भगवान ने कहा कि यह दक्ष जीवन भर मैं और मेरा करता रहता था अत: इसको सदा मैं करने वाले बकरे का मुख लगाना पडेÞगा। बकरे का मुख लगाकर यज्ञ पूरा किया गया। कथा में आसपास के गाँव मोतीपुरा,बिशनखेडा,चरनाल,आछारोही, चादँबड़ जागीर आदि गाँव से भारी संख्या में ग्रामीण जनकथा सुनने आ रहे है। कथा गाँव के प्रतिष्ठित जागीरदार परिवार के द्वारा करवाई जा रही है।  

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